हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलाम अल्लाह अलैहा) की तख़्लीक़ एक बेमिसाल वाक़िया है, जो उनकी अज़मत और पाकीज़गी को उजागर करता है। यह रिवायत शिया और बक़री (अहले सुन्नत) दोनों मक़ातिब-ए-फ़िक्र में नक़्ल की गई है, और सनद के एतिबार से इतनी मोअतबर है कि इस पर फ़तवा दिया जा सकता है।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अलैहिस्सलाम) फ़रमाते हैं: रसूल-ए-ख़ुदा (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही वसल्लम) हज़रत ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) को बहुत ज़्यादा बोसा दिया करते थे। एक दिन आयशा ने एतिराज़ करते हुए कहा: या रसूलल्लाह! आप हज़रत फ़ातिमा को इतना ज़्यादा क्यों चूमते हैं? रसूल-ए-अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही वसल्लम) ने फ़रमाया: “जब मैं मेराज पर गया, तो मैंने जन्नत की सैर की। वहां मैंने एक दरख़्त देखा जो तमाम दरख़्तों से बेहतर, ज़्यादा सफ़ेद और खुशबूदार था। मैंने उस दरख़्त से एक फल लिया। वह फल मेरे सुल्ब (कमर) में एक क़तरे की सूरत इख़्तियार कर गया, और जब मैं ज़मीन पर वापस आया तो मैंने वह अमानत हज़रत ख़दीजा के रहम में मुन्तक़िल कर दी, और उसी से हज़रत फ़ातिमा की तख़्लीक़ हुई। इसलिए जब भी मैं जन्नत की खुशबू का मुश्ताक होता हूं, मैं फ़ातिमा को सूंघता हूं।”
(बिहार अल-अनवार, जिल्द 18, सफ़ा 315; अद-दुर्र अल-मन्थूर, जिल्द 4, सफ़ा 153; अल-मुअज्जम अल-कबीर, जिल्द 22, सफ़ा 401; तफ़्सीर नूर अल-थक़लैन, जिल्द 3, सफ़ा 98)
यह बात भी क़ाबिले-ग़ौर है कि हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही वसल्लम) तमाम अंबिया, मुरसलीन और मख़लूक़ात में सबसे अफ़ज़ल और बरतर हैं। तमाम मक़ामों में सबसे पाकीज़ा मक़ाम जन्नत है, और जन्नत के दरख़्तों में सबसे बेहतरीन दरख़्त, और उस ख़ास दरख़्त का सबसे आला फल। और उसी फल से हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) के वजूद-ए-तय्यिब की जिस्मानी तख़्लीक़ हुई। यानी, वह चीज़ जिससे हज़रत ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) का जिस्म बना, वह सबसे ख़ूबसूरत फल था।
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) का जिस्म और रूह का ताल्लुक़
क़ुरआन की नज़र में जिस्म और रूह का ताल्लुक़ एक ही है। हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) की तख़्लीक़ पर क़ुरआन फ़रमाता है: “फिर जब मैंने उसे मुकम्मल किया और उसमें अपनी रूह फूंकी…” (सूरह अल-हिज्र, आयत 29) यानी जिस जिस्म में रूह फूंकी जाती है, वह उसी क़ाबिल होता है। हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) का जिस्म भी इसी क़ायदे से मुस्तस्ना है क्योंकि अल्लाह की रूह उनके जिस्म में फूंकी गई।
एक और जगह ज़िक्र है: “बेशक हमने इंसान को बेहतरीन सूरत में पैदा किया।” (सूरह तीन (95): आयत 4) कोई मख़लूक़ इंसान से बेहतर नहीं है। इंसान की हैरतअंगेज़ ख़ुसूसियात और उसके जिस्म की शक्ल इस के लिए मुनासिब और क़ाबिल है कि इसमें रूह फूंकी जाए। इस तरह रूह सिर्फ़ तभी फूंकी जाती है जब जिस्म उसके लायक़ हो। इसका मतलब यह है कि दुनिया के तमाम जिस्म इतने लायक़ नहीं हैं कि उनमें ज़िंदगी फूंकी जा सके। जब तमाम जिस्म मामूली रूह रखने के क़ाबिल नहीं हैं; तो किसी खास रूहानी नुवाज़िश के हामिल शख़्स के लिए एक ऐसा जिस्म दरकार होता है जो दुनिया के मामूली जिस्म से अलग हो।
दुनियावी माद्दी से बना जिस्म रूह के लिए लायक़ होता है कि उसमें रूह फूंकी जाए और वह भी ऐसी रूह जो अल्लाह से मऱबूत हो। इसके लिए अल्लाह ने फ़रमाया, “यह उसकी रूह है।” तो, इस मुक़द्दस जिस्म के लिए, जो जन्नत के फल खाने के बाद तशकील पाया था, किस तरह की रूह की ज़रूरत होगी? जब यह मुक़द्दस जिस्म दुनिया के तमाम जिस्मों से अलग है तो उसमें जो रूह है, वह भी दूसरों से अलग होगी।
शायद इसी बुनियाद पर, हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही वसल्लम ने फ़रमाया: “अल्लाह तआला ने उसे अपनी चमकदार नूर से पैदा किया। जब यह नूर चमका तो सारी कायनात रोशन हो गई। फ़रिश्तों की आंखें चमक उठीं; वे अल्लाह के सामने सज्दे में गिर गए। उन्होंने कहा, ‘ए रब! यह क्या रौशनी है?’ अल्लाह तआला ने वही भेजी: यह नूर मेरे नूर से है। मैंने इसे अपनी आसमानों में जगह दी है। मैंने इसे अपनी अजमत से पैदा किया है। अपने पैग़म्बरों के ज़रिए, मैं इसे एक नबी की उम्मत में ज़ाहिर करूंगा, जो तमाम दूसरे पैग़म्बरों से अफ़ज़ल होगा। फिर, इस नूर से मैं अपने इमामों को पैदा करूंगा, जो मेरे हुक्म से उठेंगे और लोगों को मेरे हक़ों की तरफ़ रहनुमाई करेंगे। वही के इख़तताम के बाद, मैं उन्हें ज़मीन पर अपना नाइब मुकर्रर करूंगा।” (बिहार अल-अनवार, जि. 43, पृ. 12)
इस तरह हज़रत फ़ातिमा ज़हरा अलैहिस्सलाम का पाक जिस्म जन्नत के बेहतरीन फल से पैदा किया गया और अल्लाह तआला ने उनकी रूह अपने चमकदार नूर से तख़्लीक़ की। अगर इस नूर के साथ इतनी अज़मत थी कि यह मादी दुनिया में आ सका तो आख़िरत में इसका क्या मर्तबा होगा?
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही वसल्लम से नक़ल किया: “आसमान और ज़मीन की तख़लीक़ से पहले, अल्लाह तआला ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा अलैहिस्सलाम का नूर पैदा किया।” हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही वसल्लम से पूछा गया, “या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व आलिही वसल्लम, क्या वह इंसान नहीं हैं?” तो हज़रत ने फ़रमाया: “फ़ातिमा एक इंसानी परी हैं।” उनसे फिर पूछा गया, “वह किस तरह इंसानी परी हैं?” तो हज़रत ने फ़रमाया: “अल्लाह तआला ने उन्हें अपने नूर से पैदा किया जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तख़लीक़ से पहले सिर्फ़ रूहें थीं। जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पैदा हुए तो यह नूर उनके सामने रखा गया।” उनसे पूछा गया, “फ़ातिमा उस वक़्त कहां थीं?” तो हज़रत ने फ़रमाया: “अरश के नीचे एक ख़ज़ाने में थीं।” उनसे पूछा गया, “उनका रिज़्क़ क्या था?” तो हज़रत ने फ़रमाया: “अल्लाह की तस्बीह और तहमीद उनका रिज़्क़ था।” (बिहार अल-अनवार, जि. 43, पृ. 4)