आशूरा का दिन वह दिन है जब इमाम हुसैन (अ.स.) को शहीद किया गया और रसूलुल्लाह (स.अ.व.अ) की औलाद को शदीद तकलीफ़ों और ग़मों का सामना करना पड़ा। लेकिन अफ़सोस कि इस दिन को ग़म और मातम का दिन मानने के बजाय, शिया दुश्मन लोग इसे ख़ुशी और जश्न का दिन समझते हैं। इसी वजह से वे आशूरा के दिन रोज़ा रखते हैं।
आइए, आशूरा के दिन रोज़ा रखने के बारे में इमाम जा’फ़र सादिक़ (अ.स.) की एक रिवायत पर नज़र डालते हैं ताकि यह समझा जा सके कि इस दिन रोज़ा रखने वाले लोग कौन हैं।
एक रावी ने इमाम सादिक़ (अ.स.) से इस बारे में पूछा, तो इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया:
“आशूरा वह दिन है जब इमाम हुसैन (अ.स.) को शहीद किया गया। अगर तुम उनकी शहादत से खुश हो तो रोज़ा रखो।”
इसका मतलब यह है कि इमाम सादिक़ (अ.स.) की इस हदीस के मुताबिक़, सिर्फ़ वही लोग आशूरा के दिन रोज़ा रखेंगे जो इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत से राज़ी और खुश हैं। इसके बाद इमाम (अ.स.) ने इसकी वजह भी बयान की।
इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया:
“बनी उमय्या ने ये नज़र मानी थी कि जब इमाम हुसैन (अ.स.) को क़त्ल कर दिया जाएगा, तो वे उस दिन को ईद क़रार देंगे, शुक्राने के तौर पर रोज़ा रखेंगे और अपने बच्चों को ख़ुश करेंगे। यह अमल (सुन्नत) अबू सुफ़यान की औलाद में जारी हुआ और आज तक चला आ रहा है। इसलिए वे इस दिन रोज़ा रखते हैं और अपने अहल-ओ-अयाल को ख़ुश करते हैं।”
इमाम (अ.स.) ने आगे फ़रमाया:
“जब कोई मुसीबत आती है तो उस दिन रोज़ा नहीं रखा जाता, बल्कि अमन और सलामती के वक़्त शुक्राने के तौर पर रोज़ा रखा जाता है। बेशक आशूरा के दिन इमाम हुसैन (अ.स.) पर एक बहुत बड़ी मुसीबत आई थी। तो अगर तुम उन लोगों में से हो जिनके लिए आशूरा का दिन मुसीबत का दिन है, तो रोज़ा मत रखो। और अगर तुम उन लोगों में से हो जो बनी उमय्या की सलामती पर खुश होते हो, तो रोज़ा रखो और अल्लाह का शुक्र अदा करो।”
[अल-अमाली — शैख़ तूसी (र.अ.), सफ़ा 667, हदीस 1397; वसाइलुश-शिया, जिल्द 10, सफ़ा 462-463, हदीस 13852]
ऐ अल्लाह! इमाम हुसैन (अ.स.) की इस सख़्त मुसीबत के सदके, हमें उन लोगों में शामिल न फ़रमा जिनके लिए आशूरा ईद और ख़ुशी का दिन है और जो इस दिन रोज़ा रखते हैं।
आमीन या रब्बुल आलमीन!